यात्रा

नदियों की सफाई: जनसमुदाय की भागीदारी

1.   नदियों के धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहलुओं को आप कैसे देखते है?

भारत की अमूर्त सांस्‍कृतिक विरासत 5000 साल पुरानी संस्‍कृति एवं सभ्‍यता से चली आ रही है।  इस बात को याद करना भी महत्‍वपूर्ण है कि हमारी दो महान नदियों अर्थात सिंधु और गंगा की घाटियों में जो सभ्‍यता विकसित हुई वह यद्यपि हिमालय की वजह से भौगोलिक क्षेत्र को सीमांकित किया परंतु कभी भी पृथक सभ्‍यता नहीं रही। विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताएँ नदियों के तट पर ही विकसित हुई हैं। गंगा-जमुना तहजीब, नर्मदा घाटी की सांस्कृतिक एवं कृष्णा-कावरी आदि का इतिहास गौरवशाली रहा है। इन सभी नदियाँ भारतीय संस्कृति में मोक्षदायिनी, पाप मोचिनी, मुक्तिदात्री, पितृतारिणी और भक्तों की कामनाओं की पूर्ति करने वाली का भी गौरव प्राप्त है। नदियाँ के प्रवाह से ही औधोगिक विकास का सृजन हुआ है जिससे समाज की आर्थिक स्थित सुदृढ़ होती है. भारतीय संस्कृति में नदियों को पूजनीय माना गया है हम नदियों की पूजा तो करते हैं लेकिन नदियों को प्रदूषित भी करते हैं।

 

2.   नदियों की सफाई से आप कितना सहमत है?

बढ़ते प्रदूषण से जीवनदायिनी नदियाँ लगातार प्रदूषित हो रही हैं। इसके कारण जलीय जीवों को खतरा पैदा हो गया है। उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। इससे ईको सिस्टम का संतुलन बिगड़ रहा है। नदी सिर्फ पानी ही नहीं होती। नदी एक समग्र एवं जीवंत प्रणाली है। अत: इसकी निर्मलता लौटाने का संकल्प करने वालों की सोच में समग्रता और हृदय में जीवंतता और निर्मलता का होना जरूरी है। नदियों को उनका मूल प्रवाह और गुणवत्ता लौटाना के लिए एक संकल्प, एक सोच की अवश्यकत की जरूरत है

 

3.   नदियों की सफाई किसकी जिम्मेदारी है?

लोगों में जागरुकता के अभाव के चलते वे समझ ही नहीं पाते कि इन स्थितियों के लिये वे खुद और उनके आसपास की गन्दगी ही जिम्मेदार है। नदियों की सफाई और स्वच्छता आपस में बहुत गहरे रूप में जुड़े हुए हैं और बिना स्वच्छ जल के अच्छी सेहत की बात करना भी बेमानी ही है। इसलिये भी नदियों की सफाई सिर्फ सरकारों का दायित्व ही नहीं बल्कि उससे कहीं बढ़कर यह हमारी जिम्मेवारी भी है।

 

4.   नदियों को स्वच्छ रखने के सरकार कौन से तरीके अपना रही है ?

केंद्र सरकार की गंगा नदी के किनारे बसे 30 शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की योजना है, ताकि गंदे पानी को नदी में जाने से रोका जा सके। 2500 किमी लंबी गंगा की सफाई के लिये नदी के तट पर बसे 118 नगरपालिकाओं की शिनाख्त कर ली गई है, जहाँ वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सहित पूरी साफ-सफाई का लक्ष्य हासिल किया जाएगा।

 

5.   आपके लिए नमामि गंगे परियोजना क्या है?

नमामि गंगे एक धार्मिक अनुष्ठान है इसमें सामाजिक जागरूकता के लिए कुछ उपाय हैं. जिसके माध्यम से सरकार गंगा की सफाई के लिए कार्य कर रही और लोगों को भी प्रेरित कर रही है. केन्‍द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय द्वारा 'नमामि गंगे' कार्यक्रम के तहत उत्तराखंड में 905 करोड़ रुपए की कुल लागत वाली 32 परियोजनाओं की शुरुआत की गई। इस कार्यक्रम में 12.83 करोड़ रुपए की लागत से तैयार दो सीवर शोधन परियोजनाओं (गंगोत्रीधाम में सीवर योजनाऔर सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एस.टी.पी.) तथा बद्रीनाथ में 0.26 एमएलडी क्षमता वाले सीवर ट्रीटमेंट प्लांट) का भी उद्घाटन किया गया।

 

6.   नदियों का बढ़ता निरादर को आप कैसे देखते है?

इसे अपनी संस्कृति की विशेषता कहें या परंपरा, हमारे यहां मेले नदियों के तट पर, उनके संगम पर या धर्म स्थानों पर लगते हैं और जहां तक कुंभ का सवाल है, वह तो नदियों के तट पर ही लगते हैं। आस्था के वशीभूत लाखों-करोड़ों लोग आकर उन नदियों में स्नान कर पुण्य अर्जित कर खुद को धन्य समझते हैं, लेकिन विडंबना यह है कि वे उस नदी के जीवन के बारे में कभी भी नहीं सोचते।  देश के सामने आज नदियों के अस्तित्व का संकट मुंह बाए खड़ा है। कारण आज देश की 70 फीसदी नदियां प्रदूषित हैं और मरने के कगार पर हैं। इनमें गुजरात की अमलाखेड़ी, साबरमती और खारी, हरियाणा की मारकंडा, उत्तर प्रदेश की काली और हिंडन, आंध्र की मुंसी, दिल्ली में यमुना और महाराष्ट्र की भीमा नदियां सबसे ज्यादा प्रदूषित हैं। पिछले 40-50 बरसों में अनियंत्रित विकास और औद्योगीकरण के कारण प्रकृति के तरल स्नेह को संसाधन के रूप में देखा जाने लगा, श्रद्धा-भावना का लोप हुआ और उपभोग की वृत्ति बढ़ती चली गई।

 

7.   व्यक्तिगत स्तर पर आप युवाओं को कैसे नदियों के पवित्रता एवं भारतीय संस्कृति से जोड़ेंगे?

वेदकाल के हमारे ऋषियों ने पर्यावरण संतुलन के सूत्रों के दृष्टिगत नदियों, पहाड़ों, जंगलों व पशु-पक्षियों सहित पूरे संसार की और देखने की सहअस्तित्व की विशिष्ट अवधारणा को विकसित किया है। उन्होंने पाषाण में भी जीवन देखने का जो मंत्र दिया, उसके कारण देश में प्रकृति को समझने व उससे व्यवहार करने की परंपराएं जन्मीं। चूंकि नदी से जंगल, पहाड़, किनारे, वन्य जीव, पक्षी और जन जीवन गहरे तक जुड़े हैं, इसलिए जब नदी पर संकट आया, तब उससे जुड़े सभी सजीव-निर्जीव प्रभावित हुए बिना न रहे और उनके अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा। असल में जैसे-जैसे सभ्यता का विस्तार हुआ, प्रदूषण ने नदियों के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया। इस सांस्कृतिक के महत्त्व को इस देश के युवा पीढ़ी को समझाना हम सब की जिम्मेदारी है. नदियों के सफाई के अभियान में युवाओं, छात्र-छात्राओं को जोड़ने का प्रयास करने जी आवश्यकता है ।

 

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